नई दिल्ली, देश में ७१ प्रतिशत भारतीय हेल्दी डाइट अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. वहीं, हेल्दी डाइट नहीं लेने वाले १७ लाख लोगों की हर साल मौत हो जाती है. ये चौंकाने वाला दावा सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (ष्टस्श्व) और डाउ टू अर्थ मैगजीन की रिपोर्ट में किया गया है. पर्यावरण दिवस के मौके पर रविवार को ये रिपोर्ट जारी की गई थी.
स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट २०२२ के आंकड़ों के मुताबिक, हेल्दी डाइट का खर्च नहीं उठा पाने वाले लोगों को डाइट रिस्क से जुड़ी बीमारियों जैसे डायबिटीज, सांस रोग, कैंसर व हृदय रोग से जूझना पड़ा है जिससे उनकी मौत भी हो जाती है.
रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की ४२ प्रतिशत आबादी स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकती है. भारत के लिए यह आंकड़ा ७१ प्रतिशत है. यह बताता है कि एक औसत भारतीय के आहार में पर्याप्त फल, सब्जियां, फलियां, नट और साबुत अनाज नहीं होते हैं.
आय से अधिक लागत के चलते नहीं ले पाते हेल्दी डाइट
वहीं, फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन के मुताबिक, किसी व्यक्ति के हेल्दी डाइट की लागत उसकी आय के ६३ प्रतिशत से अधिक होती है, इसलिए लोग हेल्दी डाइट नहीं ले पाते हैं. भारत में २० साल और उससे अधिक आयु के युवकों को प्रतिदिन करीब २०० ग्राम फल की जरूरत होती है लेकिन वे करीब ३५.८ ग्राम ही फल का सेवन कर पाते हैं, जबकि प्रतिदिन कम से कम ३०० ग्राम हरी सब्जियों के मुकाबले ने १६८.७ ग्राम सब्जियों का ही सेवन कर पाते हैं.
रिपोर्ट में खाद्य पदार्थों की कीमतों का भी किया गया विश्लेषण
रिपोर्ट में कहा गया है कि जो लोग हेल्दी डायट नहीं ले पाते हैं वे इसकी अधिक कीमत चुकाते हैं. रिपोर्ट में खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों का विश्लेषण भी किया गया है. इसमें कहा गया है कि उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) मुद्रास्फीति में पिछले एक साल में ३२७ प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में ८४ प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.