'यह साल कैफ़ी आज़मी का जन्म शताब्दी वर्ष है। पूरे साल विभिन्न स्थानों पर इस अज़ीम शायर की याद में कार्यक्रम आयोजित किेए जा रहे हैं। न सिर्फ़ भारत बल्कि इंग्लैंड समेत दुनियाभर में यह कार्यक्रम हो रहे हैं। कैफ़ी की शख़्सियत उन ख़ास लोगों में शामिल होती है जिन्होंने जो महसूस किया वही जीया और वही लिखा भी। उन्होंने औरतों को साथ चलने की बात की, मज़दूरों के हक़ों की आवाज़ उठाई और किसानों पर नज़्में कहीं।'
'रवीन्द्र कालिया की लिखी संस्मरणात्मक किताब ‘ग़ालिब छुटी शराब’ के पन्द्रहवें अध्याय में उन्होंने एक दिलचस्प प्रसंग लिखा है। वह लिखते हैं कि,'
''दो वर्तमान का सत्य सरल सुंदर भविष्य के सपने दो हिंदी है भारत की बोली तो अपने आप पनपने दो।" कलम की स्वाधीनता के लिए आजीवन संघर्षरत रहे, गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाली। धारा के विपरीत चलकर हिन्दी साहित्य, पत्रकारिता और सिनेमा में ऊंचा दर्जा हासिल करने वाले विशिष्ट कवि और गीतकार थे। बिहार के पश्चिमी चम्पारण जिले के बेतिया में 11 अगस्त 1911 को जन्मे गोपाल सिंह नेपाली की काव्य प्रतिभा बचपन में ही दिखाई देने लगी थी। काफी पहले उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। उनका मूल नाम गोपाल बहादुर सिंह था।'
'इन दिनों के हालात का अंदाज़ा तो हम सभी को है, ज़रूरी है कि ज़हनी तौर पर हम स्वयं को मजबूत बनाए रखें। मन के हारे हार है और मन के जीते जीत, हम जानते ही हैं। कला और साहित्य से बेहतर और क्या होगा जो मानसिक मजबूती देने के साथ-साथ बौद्धिक तौर पर भी हमारा पोषण कर सके। '
'नोट - ये तस्वीर नासा के वॉयजर 1 ने ली थी जब वह आख़िरी बार धरती की ओर मुड़ा था। इसे देख कर कार्ल सैगन ने जो कहा उसका अनुवाद है। "उस बिंदु को फिर दोबारा देखें। वो जगह यह है, वो घर है, वो हम हैं। इस पर वो सभी लोग हैं जिन्हें तुम प्यार करते हो, जानते हो, सुनते हो, जितने भी मनुष्य आज तक हुए हैं। हमारी ख़ुशी, हमारी वेदना, हमारे धर्म, विचार, मत, शिकारी, नायक, कायर, सभ्यताओं को बनाने और बिगाड़ने वाले, राजा और किसान, प्यार में डूबे युवा, प्रत्येक माता-पिता, आशावान बच्चा, आविष्कारक और खोजी, नैतिकता के शिक्षक और भ्रष्ट नेता, हर एक सुपरस्टार और महान नेता, हर संत और पापी, सब कुछ जो हमारे इतिहास में हुआ, इस नीले बिंदु के भीतर सूर्य के प्रकाश में दीखने वाली धूल की तरह लुप्त हो गया। इस अनंत ब्रह्मांड में पृथ्वी बहुत ही छोटा हिस्सा है। उन शासकों के बारे में सोचिए जिन्होंने इस बिंदु पर कब्ज़ा करने के लिए ख़ून की नदियां बहा दी थीं। अंतहीन निर्दयता जो एक तरफ़ के लोगों ने दूसरे तरफ़ के लोगों पर की थी। वे लोग कितनी अज्ञानता से भरे थे, एक-दूसरे को मारने की तड़प से भरे, कितनी गहरा था उनका द्वेष। हमारा दिखावा, अहंकार, यह भ्रम कि हम इस ब्रह्मांड में विशेष हैं,'
'हिंदी की सुपरिचित लेखिका ममता कालिया का गद्य की हर विधा में सार्थक हस्तक्षेप तो है ही, साथ ही उन्होंने भावों के महीन धागों को बुनते हुए कविताएं भी लिखीं। उनकी कविताओं में स्त्री चिंतन के स्वर मुखर होते हैं साथ ही जीवन की छोटी-छोटी चेष्टाओं के पुट भी हैं। उनका लिखा साहित्य उनकी संवेदनशीलता का स्पष्ट उदाहरण है। '
'मधुशाला' की पैरोडी उसके प्रथम पाठ के साथ ही आरंभ हो गयी थी। दिसम्बर '33 में जिस दिन मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिवाजी हॉल में 'मधुशाला' सुनाई थी उसके दूसरे दिन ही प्रो. मनोरंजन प्रसाद ने उसके कई पदों की पैरोडी लिखा डाली थी, और दूसरे दिन के मेरे कविता -पाठ के बीच सुनाई थी। 'सरस्वती' में प्रकाशित दस रूबाईयां देखकर ही हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में टिप्पणियां अथवा पैरोडियां लिखी जाने लगी थीं, कवि-सम्मेलनों में सुनाई जाने लगी थीं। '
'पूस की एक ठिठुरती रात तो भुलाए नहीं भूलती, जब लखनऊ में अचानक मेरे एक परम मित्र और मेजबान ने मुझे आधी रात फौरन से पेश्तर अपना घर छोड़ देने का निर्मम सुझाव दे डाला था। कुछ देर पहले हम लोग अच्छे दोस्तों की तरह मस्ती में दारू पी रहे थे। मेरे मित्र ने नया-नया स्टीरियो खरीदा था और हम लोग बेगम अख्तर को सुन रहे थे : 'अरे मयगुसारो सबेरे-सबेरे, खराबात के गिर्द घेरे पै घेरे' कि अचानक टेलीफोन की घंटी टनटनाई। फोन सुनते ही मेरे मित्र का नशा हिरन हो गया, '